कांग्रेस ने 2014 लोकसभा का बिगुल बजने से पहले कई ऐसे फैसले लिए और और कई अहम फैसलों को टाल दिया जिससे आने वाली गैर-कांग्रेसी सरकार के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी की जा सके.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को सत्ता में दो साल पूरा होने को है. देश की जनता से बड़े-बड़े वादे कर सत्ता में आई एनडीए की इस सरकार के लिए इन दो साल के दौरान सबसे बड़ी चुनौतियां उसे कांग्रेस से विरासत में मिली है. देश की अर्थव्यवस्था को 2002-07 (यूपीए का पहला शाषन) के दौरान वैश्विक तेजी में हुए विंडफॉल मुनाफा हुआ और प्रधानंत्री मनमोहन सिंह की साफ छवि के आगे 2009 में यूपीए की सरकार ज्यादा मजबूती के साथ केन्द्र की सरकार में आई. लेकिन इस सरकार के दौरान जहां उससे उम्मीद थी कि वह आर्थिक सुधारों से जुड़े अहम फैसलों को जल्द से जल्द लेकर तेज विकास दर के लिए देश को तैयार करती. लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया और 2014 लोकसभा का बिगुल बजने से पहले चुन-चुन कर ऐसे फैसले लिए जो आने वाली गैर-कांग्रेसी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनती.
1. जातिगत आरक्षण
हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग नई नहीं है. मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू (1991) होने के बाद से ही जाटों ने केन्द्रीय ओबीसी लिस्ट में शामिल किए जाने की मांग रखी थी. राज्य में 2004 में हुए चुनावों के दौरान कांग्रेस नेता भुपिंदर सिंह हुड्डा ने जाटों को आरक्षण देने का वादा किया और सत्ता पर काबिज हुए थे. इसके बाद 2012 में इस आरक्षण देने के लिए कराए गए केन्द्र सरकार के सर्वे ने इस मांग को खारिज कर दिया था. वहीं राष्ट्रीय ओबीसी कमीशन ने भी जाटों को आरक्षण देने से साफ मना कर दिया था. इसके बावजूद मार्च 2014 (आम चुनावों से ठीक पहले) में मनमोहन सिंह सरकार ने हरियाणा समेत 9 राज्यों में जाटों को आरक्षण देने के लिए उन्हें ओबीसी लिस्ट में शामिल करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2015 में केन्द्र सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया. आज मौजूदा सरकार के सामने यह मांग बड़ी चुनौती बन कर खड़ी हो गई है जबकि इस मुद्दे पर वोट बैंक की राजनीति केन्द्र और राज्य में पिछली कांग्रेस सरकार की देन है.
2. बीफ बैन
देश में बीफ बन कोई नया नहीं है. देश में समय समय पर राज्य सरकारों ने बीफ पर बैन लगाया है और खासबात यह है कि यह बैन राज्यों में कांग्रेस की सरकार के समय लगाया गया है. लेकिन हाल में महाराष्ट्र और बीजेपी शाषित कुछ राज्यों में जब प्रतिबंध लगा तो इसे राष्ट्रीय मुद्दा और मुसलमानों के खिलाफ बीजेपी और आरएसएस की साजिश बताकर कांग्रेस ने विरोध किया. जबकि सच्चाई है कि महाराष्ट्र में पहली बार 1964 में कांग्रेस शाषित बीएमसी ने लगाया था. इसके बाद 1994 और 2004 में एक बार फिर कांग्रेस और एनसीपी की साझा सरकार ने यह बैन लगाया था. लेकिन जब पिछले साल एनडीए सरकार ने देश में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात कही और महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड समेत जम्मू-कश्मीर में गौ हत्या के खिलाफ सख्त रुख अपनाया गया तो देशभर में सहिष्णुता और असहिष्णुता का मुद्दा बना दिया गया. लिहाजा, इस मुद्दे पर कांग्रेस को कुछ भी करने की छूट है लेकिन जैसे ही बीजेपी इस मामले में फैसला करती है तो उसे देशभर में मुसलमान विरोधी करार दिया जाता है.
3. लैंड बिल
भूमि अधिग्रहण बिल (लैंड बिल) भी मौजूदा एनडीए सरकार को यूपीए से विरासत में मिला है. इस बिल को तैयार करने में कांगेस सरकार ने देश में कारोबारी जरूरत के लिए खरीदे जाने वाली जमीन के लिए मुआवजे की रकम को कई गुना अधिक आंक दिया है. इससे देश में नौकरी पैदा करने वाले रोजगार के लिए भूमि अधिग्रहण करना कारोबारी तो छोड़िए खुद केन्द्र और राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा. अब इसे कारोबारियों के पक्ष में करने के लिए मोदी सरकार को कोई ऐसा फॉर्मूला लगाना होगा कि वह किसान विरोधी भी न कहलाए और विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में भूमि का अधिग्रहण भी कर सके. फिलहाल मोदी सरकार इस मसौदे पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकी है और यह चुनौती फी उसे कांग्रेस की यूपीए सरकार से बतौर लैंडमाइन ही मिली है.
4. जीएसटी
जीएसटी देश का सबसे महत्वपूर्ण टैक्स सुधार है. इसका प्रस्ताव मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार लेकर आई थी. लेकिन उस वक्त बीजेपी ने इसके दायरे को लेकर विरोध दर्ज करते हुए इसे पारित नहीं होने दिया. अब बीते दो साल से इसमें सुधार कर एनडीए सरकार पास करानी चाहती है लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारण यह पास नहीं हो पा रहा है. इस बार विपक्ष में बैठी कांग्रेस इसमें कुछ सुधारों का हवाला देते हुए पास नहीं होने दे रही है. इस टैक्स के पास हो जाने के बाद राज्य और केन्द्र द्वारा लगाए जा रहे अलग-अलग टैक्स को एक साथ कर दिया जाएगा और इससे केन्द्र सरकार की कमाई में इजाफा होना होगा. जानकारों का मानना है कि इस टैक्स सुधार से देश की अर्थव्यवस्था में 2 फीसदी का इजाफा होने की उम्मीद है. एक बार इस टैक्स के लिए निर्धारित 1 जनवरी की समय सीमा खत्म हो चुकी है और अब केन्द्र सरकार को इसे पारित कराने के लिए कांग्रेस का समर्थन चाहिए.